7th Pay Commission – न्यूनतम वेतनमान को लेकर फिर जगी उम्मीद

7th Pay Commission – न्यूनतम वेतनमान को लेकर फिर जगी उम्मीद

नई दिल्ली: सातवें वेतन आयोग (7th Pay Commission) की सिफारिशें लागू होने के साथ ही केंद्रीय कर्मचारियों के संगठनों ने न्यूनतम वेतनमान और फिटमेंट फॉर्मूला पर आपत्ति जताई थी और अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की धमकी दी थी. बाद में सरकार ने कर्मचारी नेताओं से बातचीत कर चार महीने का समय मांगा था और फिर दोनों पक्षों के बीच बातचीत का दौर शुरू हुआ. तब वित्तमंत्री जेटली, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, रेल मंत्री सुरेश प्रभु और केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के साथ बैठक में कर्मचारी नेताओं ने साफ कहा था कि सातवें वेतन आयोग में न्यूनतम वेतनमान और फिटमेंट फॉर्मूले से कर्मचारी बुरी तरह आहत हैं.

सरकार ने सातवें वेतन आयोग (7th Pay Commission) की सिफारिशों के लागू होने के करीब एक साल बाद इस उठे सभी विवादों को खत्म कर दिया और अलाउंसेस समेत कई मुद्दों का समाधान किया. एक मुद्दा न्यूनतम वेतनमान का बना रहा है. अब केंद्रीय कर्मचारियों के लिए अच्छी खबर बताई जा रही है. कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा हल करना चाहती है. कहा जा रहा है कि वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार केंद्रीय कर्मचारियों का न्यूनतम वेतनमान बढ़ाने पर विचार कर रही है. फिलहाल न्यूनतम वेतनमान 18000 रुपये प्रतिमाह है जिसे कर्मचारी बढ़ाकर 25000 रुपये प्रतिमाह करने की मांग कर रहे हैं. पहले भी सरकार से बातचीत के दौरान यह बात निकलकर सामने आई कि सरकार न्यूनतम वेतनमान को 21000 रुपये प्रतिमाह करने को तैयार हो गई है, लेकिन कुछ कर्मचारी संगठन इस पर तैयार नहीं थे. अब एक बार यह कहा जा रहा है कि कर्मचारी इसे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं.

कर्मचारी नेताओं ने सरकार को याद दिलाया कि सरकार के मंत्रियों ने कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों से बातचीत में कहा था कि वे कर्मचारियों की चिंताओं को दूर करने का प्रयास करेंगे और तब कर्मचारी संगठनों ने अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल को टाल दिया था.

उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने भत्तों पर दी गई 7वें वेतन आयोग (7th Pay Commission) की सिफारिशों को 34 संशोधनों के साथ स्वीकार कर लिया था, इसे लागू करने पर कुल 30,748.23 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं. बता दें कि 48 लाख सरकारी कर्मचारियों को इसका फायदा हुआ. यह 1 जुलाई से लागू हो गया है. सरकार ने विशिष्ट कार्यरत जरूरतों को ध्यान में रखते हुए 12 भत्तों को समाप्त न करने का निर्णय लिया था. कई भत्तों के विशिष्ट स्वरूप को ध्यान में रखते हुए विलय किये जाने वाले 37 भत्तों में से 3 भत्तों की अलग पहचान अब भी बनी है. आवास किराया भत्ता (एचआरए) का भुगतान क्रमश: एक्स, वाई एवं जेड शहरों के लिए 24, 16 और 8 फीसदी की दर से दिया जा रहा है.

एक्स, वाई एवं जेड शहरों के लिए एचआरए 5400, 3600 एवं 1800 रुपये से कम नहीं है, 18000 रुपये के न्यूनतम वेतन के 30, 20 एवं 10 फीसदी की दर से इसकी गणना की जा रही है. इससे 7.5 लाख से भी ज्यादा कर्मचारी लाभान्वित हो रहे हैं. 7वें वेतन आयोग ने डीए के 50 एवं 100 फीसदी के स्तर पर पहुंचने की स्थिति में एचआरए में संशोधन की सिफारिश की थी, हालांकि सरकार ने डीए के क्रमश: 25 एवं 50 फीसदी से ज्यादा होने की स्थिति में दरों में संशोधन करने का निर्णय लिया.

अत्यंत जोखिम एवं कठिनाई को ध्यान में रखते हुए सरकार ने सियाचिन भत्ते की दरों को 14000 रुपये प्रति माह (सैनिकों के लिए) से बढ़ाकर 30000 रुपये और 21000 रुपये प्रति माह (अधिकारियों के लिए) से बढ़ाकर 42500 रुपये कर दिया था. सरकार ने रखरखाव के साथ-साथ साफ-सफाई की निहायत जरूरत को ध्यान में रखते हुए नर्सों को हर महीने ड्रेस भत्ता देने का निर्णय लिया. विशेष संरक्षण समूह के लिए ड्रेस भत्ते की ऊंची दर को सरकार ने स्वीकार कर लिया था.

न्यूनतम वेतनमान का मुद्दा क्यों है पेचीदा
कई ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब का सभी को इंतजार है. न्यूनतम वेतनमान बढ़ाने की मांग के चलते अब क्लास वन, क्लास टू, थ्री और फोर श्रेणी के केंद्रीय कर्मचारियों में भी इस वेतन आयोग की सिफारिशों को लेकर हुए वास्तविक बढ़त को लेकर तमाम प्रश्न हैं.

सभी लोगों को अब इस बात का इंतजार है कि सरकार कौन से फॉर्मूले के तहत यह मांग स्वीकार करेगी. सभी अधिकारियों को अब इस बात का बेसब्री से इंतजार है. ऐसे में कई अधिकारियों का कहना है कि हो सकता है कि न्यूनतम वेतन बढ़ाए जाने की स्थिति में इसका असर नीचे से लेकर ऊपर के सभी वर्गों के वेतनमान में होगा. कुछ अधिकारी यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि हो सकता है कि इससे वेतन आयोग की सिफारिशों से ज्यादा बढ़ोतरी हो जाए. ऐसा होने की स्थिति में सरकार पर केंद्रीय कर्मचारियों को वेतन देने के मद में काफी फंड की व्यवस्था करनी पड़ेगी और इससे सरकार पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा.

वहीं, कुछ अन्य अधिकारियों का यह भी मानना है कि सरकार न्यूनतम वेतनमान बढ़ाए जाने की स्थिति में कोई ऐसा रास्ता निकाल लाए जिससे सरकार पर वेतन देने को लेकर कुछ कम बोझ पड़े.

कुछ लोगों का कहना है कि सरकार न्यूनतम वेतनमान में ज्यादा बढ़ोतरी न करते हुए दो-या तीन इंक्रीमेंट सीधे लागू कर देगी जिससे न्यूनतम वेतन अपने आप में बढ़ जाएगा और सरकार को नीचे की श्रेणी के कर्मचारियों को ही ज्यादा वेतन देकर कम खर्चे में एक रास्ता मिल जाएगा. सवाल उठता है कि क्या हड़ताल पर जाने की धमकी देने वाले कर्मचारी संगठन और नेता किस बात को स्वीकार करेंगे.

Source: NDTV